Page 29 - Konkan Garima ank 19
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अंक - 19 माच , 2022
िहंदी याकरण- ‘का, क े , को’ क े बारे म जान
- संतोष पाटोल े
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राजभाषा सहायक , क कण रलवे
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‘क कण ग रमा’ क िपछले अंक म हमने याकरिणक म भी पढ़ने को िमलता है िक—‘यहां घमासान क लड़ाई
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संबंध क अिभ यि कारक िच ‘ने’ और ‘को’ क बार हो रही है।’ होना चािहए िक यहां घमासान लड़ाई हो रही है।
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म पढ़ा था। इस बार हम ‘का’ क संबंध म चचा करगे िक इसी तरह क ु छ लोग ‘स’ क जगह ‘का’ िलखते ह -जैस-
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‘का’ का योग कस, िकस तरह िकया जाता है- ‘स यता का दाढ़ी का या संबंध है?’ या ‘वह आँख क
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‘िववकानंद का िव ालय’ इस पद म ‘का’ का संबंध ओझल हो गया।’ दरअसल कहना चािहए िक वह आख
कारक है। पुि लंग वचन म ‘का’ है, ीिलंग एकवचन म से ओझल हो गया।
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‘क ’। दोन िलंग म बह वचन ‘क’ होता है जैस-‘राम क इसी कार क ु छ लोग अं जी क भाव क कारण िलखते ह -
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भ ’, ‘शबरी क बेर’। सं कृ त क इक, ईन, ईय यय ‘बनारस का शहर’। क ु छ लोग ‘क’ का भी उसी कार
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लगने से िवशेषण बनते ह यथा-काय से काियक िनरथक योग करते ह िजस कार को या का करते ह -इस
(सामुदाियक), धन से धिनक, राज से राजक य। सं कृत म बात क कहन म िकसी को संकोच न होगा (यह बात कहने म
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‘क’ यय से बने म क (म देश का), रोमक (रोम देश िकसी को संकोच न होगा) या वह चेक को लेने लगा (वह
का)। पुरानी िहंदी म ‘का’ क िलए ‘क’ चलता था। िहंदी का चेक लेने लगा)। या पाठक को उप यास क पढ़ने म
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‘का’ सं कृत क ‘क’ यय से बना है। ाकृत म ‘इदं’ क आसानी होती है। ‘क’ क आव यकता नह है।
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अथ म करओ, क रअ, करक ं आिद आते ह । इ ह से पुरानी कभी-कभी लोग ‘का’ क परम अशु और ामक योग
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िहंदी क ‘करा’ ‘करी’ आिद िनकले ह जैस- भी करते ह जैस- ीमती सर वती देवी क ितबंध हट।
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पानी करा बुलबुला, अस मानस क जात (कबीर)। इ ह व तुत: ितबंध हट तो सर वती देवी पर स, परंतु वा य का
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से िहंदी क का, क बने। ाकृ त ‘क स ’ से िहंदी का ‘िकस’ अथ होता है अथवा हो सकता है िक ीमती सर वती देवी
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बना। िहंदी म ‘क स करक ं ’ िहंदी म िकसका हो गया। ने जो ितबंध लगाए थे, वे हट अंत: उ वा य म ‘क’
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ाकृत क क, इ क , ए चय से िहंदी म का, क क बने। अशु और ामक है।
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करा, करो म क का लोप हो गया तो रा, र, रो बने। कृ त भास कभी-कभी ‘का’ या ‘पर’ का भेद न समझने क कारण एक
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क नाटक म ‘करओ’ है, मृ छीकिटक म ‘करक ं ’ है। जगह दूसरे का योग कर जाते ह जैसे- आपने अनेक ंथ
हेमचंद ने ‘कर’ का योग िकया है। धनपाल क रचनाओं िलखकर िहंदी पर उपकार िकया है। साधारणत: यहां ‘पर’
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म करा, करी है। क जगह ‘का’ होना चािहए। िकसी का उपकार करना और
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‘का’ क योग म क ु छ लोग ग़लितयां करते ह । भूल से ‘को’ िकसी पर उपकार करना म बह त अंतर है। पहले पद का अथ
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क था न पर ‘का’ िलखत-बोलते ह जैस-‘उसने लड़क का साधारण प से िकसी क भलाई करना है और दूसरा पद
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गला घ टकर मार डाला।’ साधारणत: इसम ‘मार डाला’ एहसान करने क अथ म है। जैसे-यिद कोई ज म भर िलखता
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पद म कु छ प ता क अपे ा है। मार डाला—िकसे ? होना तो रहे अं ेजी या उदू म , और कभी भूले-भटक एकाध लेख
चािहए—’उसन उस लड़क को, गला घ टकर मार या पुि तका िहंदी म भी िलख डाले तो कह गे-‘चिलए,
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डाला।।’ आपने िहंदी पर बह त उपकार िकया।’ पर यिद कोई सारा
इसी कार क ु छ लोग ‘को’ का यथ और अनाव यगक जीवन िहंदी क सेवा म िबताए और उसम बह त से ंथ
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योग करते ह , उसी कार कभी-कभी ‘का’ या ‘क’ का भी िलखे तो कह गे-‘आपने अपनी रचनाओं से िहंदी का बहत
योग करते ह । बोलचाल म तो लोग कह जाते ह िक –‘यह उपकार िकया है।’
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लड़का महा का पाजी है।’ पर अ छ-अ छ समाचार-प
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