Page 45 - Konkan Garima 17th Ebook
P. 45
अक - 17 माच , 2021
ं
ु
ि थित म हम स चे ान तथा िववेक को ा करने क े िलए थम ि थित म जड़ी ह ई हथेिलय को खोलते ह ए ऊपर क
नतम तक होकर ाथ ना करते ह िजससे हम सत अथवा ओर तान तथा सास भरते ह ए कमर को पीछे क ओर मोड ।
ँ
्
्
असत क े अ तर को समझ सक । गद न तथा रीढ़ क हडिडय पर पड़ने वाले तनाव को महसस ू
्
9. ॐ आिद याय नमः (अिदित-सत को णाम) कर। अपनी मता क े अनसार ही पीछे झक और यथासा य ही
ु
ु
ु
िव जननी (महाशि ) क े अन त नाम म एक नाम अिदित भी क भक करते ह ए झक े रह ।
ु
ु
है। वह सम त दव े क जननी, अन त तथा सीमार िहत है। वह ततीय ि थित - ह तपादासन या पादह तास
ृ
आिद रचना मक शि है िजससे सभी शि या िनःसत ह ई ह । दसरी ि थित से सीधे होते ह ए रच े क (िनः ास) कर तथा उसी
ू
ृ
ँ
अ सच ं लानासन म हम उस अन त िव -जननी को णाम वाह म सामने क ओर झकते चले जाए । दोन हथेिलय को
ँ
ु
ु
करते ह । दोन पज ं क े पास जमीन पर जमा द। घटने सीधे रख तथा
ु
10. ॐ सिव ेनमः ( सय क उ ीपन शि को णाम ) म तक को घटन से िचपका द यथाशि बा -क भक कर।
ु
ू
ृ
सिव उ ीपक अथवा जागत करने वाला दव े है। इसका सब ं ध ं नव िश धीर- े धीर ेइस अ यास को कर और ार भ म क े वल
ु
ू
ू
सय दव े से थािपत िकया जाता है। सिव ी उगते सय का हथेिलय को जमीन से पश कराने क ही कोिशश कर।
ितिनिध है जो मन य को जागत करता है और ि याशील चतथ ि थित- एकपाद सारणासन
ु
ृ
ु
बनाता है। "सय " पण प से उिदत सरज का ितिनिध व तीसरी ि थित से भिम पर दोन हथेिलयां जमाए ह ए अपना
ू
ू
ू
ू
ँ
ँ ँ
करता है। िजसक े काश म सार े काय कलाप होते ह । सय ू दाया पाव पीछे क ओर फ क े ।इस यास म आपका बाया पाव ँ
नम कार क ह तपादासन ि थित म सय क जीवनदायनी आपक छाती क े नीचे घटन से मड़ जाएगा, िजसे अपनी छाती
ु
ु
ू
शि क ाि हेत सिव को णाम िकया जाता है। से दबाते ह ए गद न पीछे क ओर मोड़कर ऊपर आसमान क
ु
ं
ँ ु
11. ॐ अका य नमः ( शसनीय को णाम ) ओर दख े । दाया घटना जमीन पर सटा ह आ तथा पजा ँ
अक का ता पय है - उजा । सय िव क शि य का मख ु अगिलय पर खड़ा होगा। यान रख , हथेिलया जमीन से उठने
ँ
ँ ु
ू
ोत है। ह तउ ानासन म हम जीवन तथा उजा क े इस ोत न पाए। ं ास- ि या सामा य प से चलती रहे।
क े ित अपनी ा कट करते ह । पचम ि थित - भधरासन या द डासन
ं
ू
12. ॐ भा कराय नमः ( आ म ान- र े क को णाम ) एकपाद सारणासन क दशा से अपने बाए पैर को भी पीछे ले
ँ
सय नम कार क अि ं तम ि थित णामासन (नम कारासन) जाए और दाए पैर क े साथ िमला ल ।हाथ को क ध तक सीधा
ँ
ू
ँ
म अनभवातीत तथा आ याि मक स य क े महान काशक क े रख । इस ि थित म आपका शरीर भिम पर ि भज बनाता है,
ु
ु
ू
्
ू
्
प म सय को अपनी ा समिप त क जाती है। सय हमार े िजसम आपक े हाथ ल बवत और शरीर कण वत होते ह ।परा ू
ू
ु
चरम ल य-जीवनमि क े माग को कािशत करता है। भार हथेिलय और पज पर होता है। ास- ि या सामा य
ँ
णामासन म हम यह ाथ ना करते ह िक वह हम यह माग रहनी चािहये अथवा क े ह िनय को मोड़कर पर े शरीर को भिम ू
ू
ू
िदखाए ं। इस कार सय नम कार प ित म बारह मं का अथ पर समाना तर रखना चािहए। यह द डासन है।
्
सिहत भाव का समावेश िकया जाता है। ष ि थित - सा ाङग िणपात
ू
ँ
सय -नम कार क ि थितया : ं पच ं म अव था यािन भधरासन से सास छोड़ते ह ए अपने शरीर
ू
थम ि थित - ि थत ाथ नासन को नीचे झकाए। ं क े ह िनया मड़कर बगल म िचपक जानी
ु
ँ ु
ू
ँ
ँ
सय -नम कार क थम ि थित ि थत ाथ नासन क है। चािहए। दोन पजे, घटने, छाती, हथेिलया तथा ठोड़ी जमीन
ु
ु
सावधान क म ा म खड़े हो जाए। ं अब दोन हथेिलय को पर एव ं कमर तथा िनत ब उपर उठा होना चािहए। इस समय
ु
पर पर जोड़कर णाम क म ा म दय पर रख ल ।दोन हाथ 'ॐ प णे नमः ' इस म का जप करना चािहए ।
ू
क अगिलया पर पर सटी ह और अगठा छाती से िचपका कछ योगी म तक को भी भिम पर िटका दन े े को कहते ह ।
ँ
ँ ु
ँ ू
ु
ू
ह आ हो। इस ि थित म आपक कह िनया सामने क ओर बाहर स म ि थित - सपा सन या भजङगासन
ँ
् ु
िनकल आएगी।अब आख ब द कर दोन हथेिलय का छठी ि थित म थोड़ा सा प रवत न करते ह ए नािभ से नीचे क े
ँ
ँ
ू
ँ
पार प रक दबाव बढाए । ास- ि या िनबा ध चलने द। भाग को भिम पर िलटा कर तान द। अब हाथ को सीधा करते
ँ
ि तीय ि थित - ह तो ानासन या अ च ासन ह ए नािभ से उपरी िह से को ऊपर उठाए। ास भरते ह ए
43