Page 44 - Konkan Garima 17th Ebook
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अक - 17                                                                                          माच , 2021
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               •  ि य  म  मािसक धम  म  6 िदन तक, 4 माह का गभ  होने  दव े ता का आवास आकाश म  है, उसका  ितिनिध व करने
                    पर  यायाम बद ं  कर   एव  ं सव क े  4 माह बाद पनः श  कर  वाले अि न का आवास भिम पर है।
                                                                                       ू
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                    सकते ह ।                                        4.  ॐ भानवे नमः (  दी  होन  ेवाले को  णाम )
                                                                                      ु
                                                                     ू
                                                                                                          ू
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               सय  नम कार म  का अथ  एव भाव :                        सय  भौितक  तर पर ग  का  तीक है। इसका स म ता पय  है
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                                                                                                      ू
                                                                        ु
               सय  नम कार तेरह बार करना चािहए और   येक बार सय   ू   िक ग  हमारी  ांितय  क े  अध ं कार को दर करता है - उसी
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                                                                                                         ू
               मं   क े  उ चारण से िवशेष लाभ होता है, वे सय  मं  िन न है-   कार जैसे  ातः काल म  राि  का अध ं कार दर हो जाता है।
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                                                                    अ  सच ं ालनासन क  ि थित म  हम उस  काश क  ओर मह  ँु
               1.ॐ िम ाय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सया य नमः, 4. ॐ  करक े  अपने अ ान  पी अध ं कार क  समाि  हेत  ाथ ना
                                                                                                              ु
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               भानवे नमः, 5. ॐ खगाय नमः, 6. ॐ प णे नमः,7. ॐ  करते ह ।
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               िहर यगभा य नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आिद याय  5. ॐ खगाय नमः ( आकाशगामी को  णाम )
                                                                                                               ू
                                                                                              ु
               नमः,    10. ॐ सिव े नमः, 11. ॐ अका य नमः, 12. ॐ      समय का  ान  ा  करने हेत  ाचीन काल से सय  य  ं
               भा कराय नमः, 13. ॐ सिवत सय नारायणाय नमः              (डायल ) क े   योग से लेकर वत मान कालीन जिटल य  ं   क े
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               1.  ॐ िम ाय नमः ( सबक े  िम  को  णाम ):               योग तक क े  लंबे काल म  समय का  ान  ा  करने क े  िलए
               नम कारासन ( णामासन) ि थित म  सम त जीवन क े   ोत  आकाश म  सय  क  गित को ही आधार माना गया है। हम इस
                                                                              ू
               को नमन िकया जाता है। सय  सम त   ा ड का िम  है,  शि  क े   ित स मान  कट करते ह  जो समय का  ान  दान
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                य िक इससे प वी समत सभी  ह  क े  अि त व क े  िलए  करने तथा उससे जीवन को उ नत बनाने क   ाथ ना करते ह ।
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               आव यक असीम  काश, ताप तथा ऊजा   ा  होती है।  6. ॐ प ण  ेनमः ( पोषक को  णाम )
                                                                          ू
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               पौरािणक   थ  म  िम  कम  क े   ेरक, धरा-आकाश क े  पोषक   सय  सभी शि य  का  ोत है। एक िपता क  भाित वह हम
               तथा िन प   यि  क े   प म  िचि त िकया है।  ातःकालीन   शि ,  काश तथा जीवन दक े र हमारा पोषण करता है। सा ांग
               सय  भी िदवस क े  काय कलाप  को  ारभ ं  करने का आ ान   नम कार क  ि थित म  हम  शरीर क े  सभी आठ क े     को भिम  ू
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               करता है तथा सभी जीव-ज तओ ं को अपना  काश  दान         से  पश  करते ह ए उस पालनहार को अ ांग  णाम करते ह ।
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                                                                                          ू
               करता है।                                             त वतः हम उसे अपने स पण  अि त व को समिप त करते ह
               2.  ॐ रवये नमः (  काशवान को  णाम )                   तथा आशा करते ह  िक वह हम  शारी रक, मानिसक तथा
               "रवये" का ता पय  है जो  वय  ं  काशवान है तथा स पण   ू  आ याि मक शि   दान कर।
               जीवधा रय  को िद य आशीष  दान करता है। ततीय ि थित  7. ॐ िहर यगभा य नमः (  विण म िव ा मा को  णाम )
                                                                                                ्
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               ह तउ ानासन म  इ ह  िद य आशीष  को  हण करने क े        िहर यगभ ,  वण  क े  अ डे क े  समान सय  क  तरह दद े ी यमान,
                                                                                          ृ
               उ े य से शरीर को  काश क े   ोत क  ओर ताना जाता है।   ऐसी सर ं चना है िजससे सि कता     क  उ पि  ह ई है।
                                                                                                           ू
               3.  ॐ सया य नमः ( ि याओ क े   र े क को  णाम )        िहर यगभ    येक काय  का परम कारण है। स पण    ा ड,
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               यहा सय  को ई र क े   प म  अ य त सि य माना गया है।   कटीकरण क े  पव  अ तिन िहत अव था म  िहर यगभ  क े
                                                                                  ू
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                ाचीन वैिदक  थ ं   म  सात घोड़  क े  जते रथ पर सवार होकर  अ दर िनिहत रहता है। इसी  कार सम त जीवन सय  (जो
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                                                                                                               ू
               सय  क े  आकाश गमन क  क पना क  गई है। ये सात घोड़े परम  महत िव  िस ांत का  ितिनिध व करता है) म  अ तिन िहत है।
                                                                        ्
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               चेतना से िनकलने वाले स  िकरण  क े   तीक है। िजनका  भजग ं ासन म  हम सय  क े   ित स मान  कट करते ह  तथा यह
                                                                                   ू
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                कटीकरण चेतना क े  सात  तर  म  होता है - भ (भौितक), -   ाथ ना करते ह  िक हमम  रचना मकता का उदय हो।
                                                      ू
               भवः (म यवत , स म न  ीय),  वः ( स म, आकाशीय), मः  8. ॐ मरीचये नमः ( सय  रि मय  को  णाम )
                                                                                      ू
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               ( दव े  आवास), जनः (उन िद य आ माओ ंका आवास जो अह  ं  मरीच   प   म  से एक है। पर त इसका अथ  मग मरीिचका भी
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               से म  है), तपः (आ म ान,  ा  िस   का आवास) और         होता है। हम जीवन भर स य क  खोज म  उसी  कार भटकते
               स यम (परम स य)। सय   वय  ं सव  च चेतना का  तीक है    रहते ह  िजस  कार एक  यासा  यि  म  थल म    (सय   ू
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               तथा  चेतना  क े   सभी  सात   वर   को  िनयि ं  त  करता  है।   रि मय  से िनिम त) मरीिचकाओ ंक े  जाल म  फसकर जल क े
                                                                                ँ
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               दव े ताओ ं म  सय  का  थान मह वपण  है। वेद  म  विण त सय   ू  िलए मख  क  भाित  इधर-उधर दौड़ता रहता है। पव तासन क
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