Page 44 - Konkan Garima ank 19
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अंक - 19                                                                                        माच , 2022







                                                  रोग  क  उ पि

                                                                                                      े
                                                                                                   -  या काकड़,  े
                                                                                            व र  िलिपक, क कण रलव े
                                                                                                              े
                                                     े
               '
                             े
                          '
                   -

            हम जड़ी बूिटय  क  ारा िचिक सा करने क बार म  बताने  अपानवायु और  यानवायु सम त शरीर म  रहती है।
                                                 े
            से पहले यह बता देना आव यक समझते ह  िक शरीर म        1. उदानवायु- यह गले म  घूमती है। इसी क  शि  से  ाणी
                                                     े
                                               -
                                          े

                                   ?
            रोग  क  उ पि   य  होती है अ छ खान पान क बाद भी      बोलने और गाने म  समथ  होता है। जब यह वायु कु िपत हो
            हमारा शरीर अ व थ  य  रहता है  ायः वात िप  और        जाती है, तब ऊपर क  ओर क ठ- भृित  थान  म  रोग क
                                         ?


                                                   ,
                       े
                                                    -
                                                      -
            कफ आिद क दूिषत हो जाने से ही शरीर म  िकसी न िकसी    उ पि  कर देती है।
                                                                2.  ाणवायु- यह  दय म  रहती है और मुंह म  सदा चलती
            रोग क  उ पि  हो जाती है और रोग क  यह उ पि  ही शरीर
                                                                रहती है तथा  ाण  को धारण करती है। खायी ह ई चीज  को
            क  वा  य को चौपट कर डालती है। आयुवद क  िस
                                                     े
             े

                                                                भीतर ले जाती है और  ाणर ा करती है। जब यह क ु िपत
             ंथ  म  भी इन दोष  को ही रोग  को उ पि  का सबसे बड़ा
                          '
                                '
            कारण बताया है। ि दोष शरीर को दिषत करने वाले हािन    होती है, तब िहचक  तथा  ास आिद रोग  क  उ पि


                                                       ,
                                          ू
            पह ंचाने वाले होते ह । ये ि दोष यानी तीन  दोष  दय और   करती है।
                                                                3. समानवायु- इसका  थान नािभ म  है। यह आमाशय और

                  े

            नािभ क बीच   म  और ऊपर  या  होकर िदन रात और
                                                   ,
                                                                प वाशय म  िवचरती रहती है और जठराि न से िमलकर
                                         ,

            भोजन क अंत म य और आिद म   म से गमन करते ह ।
                   े

                        ,
                                                                खाये ह ए भोजन को पचाती है तथा भोजन से जो मल-मू

                                             ,
            चूंिक ये धातु और मल को दूिषत करते ह  इस कारण इनको
                                                                आिद उ प न होते ह , उ ह  अलग-अलग करती है। जब यह
            'दोष ' कहा गया है।
                                                                कु िपत हो जाती है, तब मंदाि न, अितसार और वायुगोला

            वात अथात् वायुदोष :

            वायु धातु और मल को दूसरी जगह ले जाने वाली ज दी      रोग  क  उ पि  करती है।
                                                      ,
                       ,
                                                ,
                 े

                                   ,
            चलन  वाली रजोगुणयु  सू म  खी शीतल  और               4. अपानवायु- यह प वाशय म  रहती है और मल-मू ,
                                         ,





                                                       े

                                         ;

            ह क  होती है। वायु योगवाही है अथात् िप  क साथ       शु -वीय, गभ  और आ व को िनकालकर बाहर डाल
                         े
                                    े
            िमलकर िप  क और कफ क साथ िमलकर कफ क काम              देती है। यिद यह क ु िपत हो जाती है तो िनि त  प से
                                                       े
            करने लगती है। सब दोष  म  वायु ही  धान है। प वाशय,   मू ाशय और गुदा-संबंधी रोग तथा शु दोष,  मेह आिद

                           ,

                                                      े
                ,
            कमर जांघ कान हड्डी और  वचा आिद वायु क  मुख          रोग  क  उ पि  करती है।

                     ,
                                                                5.  यानवायु-सम त शरीर म  िवचरण करने वाली यह वायु

                                                      ,
             थान ह । इनम  मु य  थान प वाशय का है। नाम  थान
                                                                रस, पसीन और र  को बहाने वाली है। नीचे डालना, ऊपर
                                                                         े
                                                            े
            और कम भेद से एक ही वायु पांच  कार क  होती है। वायु क
                                                                डालना, आंख  बंद करना, खोलना आिद सब काय  इस
            पांच नाम िन न ह -
                                                                                      े
                                                                वायु क  ारा ही संप न होत ह । जब यह क ु िपत हो जाती है तो
                                                                     े
            1. उदानवायु         2.  ाणवायु         3. समानवायु
            4. अपानवायु        5.  यानवायु                      शरीर म  रोग क  उ पि  कर देती है। जब कभी पांच  वायु
            मनु य क क ठ म  उदानवायु  दय म   ाणवायु कोठ क   एक साथ कु िपत हो जाती ह , तो शरीर को रोग  का घर बना
                                                         े
                                    ,

                   े

                                                    ,


                                           ,
                                                     (

                   े
            अि न क नीचे नािभ म  समानवायु मलाशय  गुदा म   देती ह  और  वा  य का नाश कर देती ह ।
                        (
                                )
                                                         )
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