Page 33 - Konkan Garima 17th Ebook
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अक - 17                                                                                          माच , 2021
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                    आज वत मान म  हम दख े  रहे ह  िक यवा वग  का मनोबल ,  धीर  े- धीर  ेइसक े  आिद होते चले जाते ह  ।
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               इ छाशि  का अभाव, च र  बल अथ  बल क े  साथ भौितक           एक सव  ण क े  अनसार यह बताया गया है िक भारत म
                                                                                        ु
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               बल क े  अप य होते ह  । आज यवा वग  मादक   य  क े  सेवन से  20 लाख से अिधक लोग नशाखोरी क े  िशकार है और इसम
               िवचलन करीता, आदश  श यता आपरािधकता तथा मानिसक  यवा वग  क  िगनती  यादा है। जबिक ये सरकारी आकड़े है।
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                                                                     ु
                यािध म    त होता दख े  रहे ह  । िदन-ब-िदन इसक  मा ा  वा तिवकता तो यह है िक िकसी न िकसी  प म  एक करोड़ से
               बढ़ती ही जा रही है। जो लोग नशाखोरी को अपनी  ित ा  अिधक लोग नशे का  योग करते ह  ।
               बनक े  समाज क े  सामने मान-पान ले रहे है उनको अपनी       हम मानते है िक नशे क  लत को छोड़ना आसान नह  पर,
               गलितयां का एहसास ही नही है। ये सब करते समय ये वग  नह   नाममिकन भी नह  है। धैय  रखकर इस आदत से छटकारा
                                                                                                               ु
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               सोच रहे है िक अपनी जठी शानो शौकत और लत  से हम  पाया जा सकता है। नशा मि  क े  िलए प रवार का रोल बह त
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                                                                                         ु
               अपनी भावी पीढ़ी का भिव य खतर  े म  डाल रहे ह  । इन मादक  बड़ा होता है । प रवार क े  सभी लोग - सद य  को मजबत  ू
                 य  िक खेती बारी से भावी पीिड़य  म  आपरािधकता क े  बीज  रहकर यवाओ ंका साथ दन े ा होगा। इस नशाखोरी क  रोकथाम
                                                                           ु
               बोये जा रहे ह  जो हमारी मानवता एव  ं िविध यव था क े  िलए  सभी नाग रक  क  िज़ मेदारी होगी । तभी सही मायने म  हम
               खली चनौती है।                                        दश े  क े  भिव य को बचा सकते ह  । उनक  सपन  क  उड़ान को
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                    उ च वग  म  नोकरी और िबजनेस क े  चढ़ाव-उतार क   नया हौसला द  ेसकते ह  ।
               वजह से नशाखोरी का सहारा िलया जा रहा है।  टेटस और         हम ये भी आशा रखते ह  िक आने वाले समय म  दश े  क े
               तनाव से बचाने क े  िलए फ़शनेबल और  टाइिलश िदखने क े   यवा अपने सपन  क  उड़ान से दश े  का भिव य सनहरा कर द! े
                                                                     ु
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               िलए श  म  उ च वग  म  तेजी से आकष ण बढ़ता गया है। िफर
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                                             व  बज़ग – पौध सतान                                      - दामोदर डी. नाईक
                                                                          े ं
                                                                ु ु
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               पया वरण क   ि  से हमारा परम र क और िम  व  है। यह व   ृ  कहते थे। जहां एक और हमार  े दर   ा मिनय  ने जीवन क े
                                                      ृ
                                                                                                      ु
                                                                                               ू
               हम  अमत  दान करता है। हमारी दिषत वाय को  वय  ं  हण   आ याि मक प  पर िच तन िकया, पया वरण पर भी उतना ही
                                                   ु
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               करक े  हम   ाण वाय दत े ा है। व  हर  कार से प वी क े  र क है    यान िदया । जो कछ पया वरण क े  िलए हािनकारक था उसे
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                                                                                   ु
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               जो म  थल पर िनय  ं ण करते ह , निदय  क  बाढ़  क  रोकथाम   आसरी  कित कहा और िहतकर को दव ै ी  वि  माना । मानव
                                                                                                       ृ
                                                                            ृ
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                                                                                                                ृ
               व जलवाय को  व छ रखते ह , समय पर वषा  लाने म  सहायता   समाज और  कित म  घिन  सब ं ध ं  रहा है। मानव क े   कित से
                                                                                ृ
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               करते ह , धरती क  उपजाऊ शि  को बढ़ाते ह । व  हमारा दाता   सब ं ध ं  क े वल गहर  े ही नह , भावक एव  ं मािम क भी है।  कित
                                                     ृ
                                                                                                                  ृ
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               है जो हम  िनरत ं र सख ही दत े ा रहता है। जनिहत लोक क याण   हमारी माता है, व  वन पितयां पया वरण सत ं लन क े  बह त ही
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                                                                                 ृ
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               क   ि  से दस क ं ओ ंको समान एक बावड़ी का मह व है । दस   मह वपण   तंभ ह  । ये पया वरण क े  सजग  हरी क े  समान है।
                                                                          ू
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               बाविड़य  क े  समान एक तालाब, दस तालाब  क े  समान एक प   ु  हमार  े आिदका य रामायण और महाभारत म  व   वन  का
                                                                          ृ
               का और दस प   क े  समान एक व  का मह व है । इसे इस तरह   िच ण प वी क े  र क व   क े  समान पाया जाता है। वन , व    ृ
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               से भी कह सकते है िक दस प  अपने जीवन काल म  िजतना     को ऋिषय   ारा प वत प रपािलत करते वण न िकया है। अपने
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                                             ृ
               सख, लाभ दत े े है, उतना लाभ एक व  आपने जीवन काल म    िकसी  वाथ  िसि  क े  िलए हर- े भर  े पेड़  को काटना पाप माना
                                                                            ु ृ
               पह चाता है।                                          गया है। मन  मित म  बताया गया है िक अनाव यक  प से पेड़
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               हमार  े ऋिष मिन जानते थे िक  कित जीवन का  ोत है और   को काटने पर दड ं  का िवधान है। जो व  अपना लाभ  ािणय  को
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               पया वरण क े  सम  और  व थ होने से ही जीवन सम  और      व पया वरण को द  ेचक े  होते ह  क े वल उसे ही काटा जा सकता है।
                                                          ृ
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               सखी होता है। क े वल इतना ही नह  वे तो  कित क  दव े  शि  क े    हम यह समझते रहे ह  िक सम त  ाकितक स पदा पर एकमा
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                प म  अच ना उपासना भी करते थे और  कित को परमे र भी   हमारी ही आिधप य है। हम जैसा चाह , इसका उपभोग कर।    इसी
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