Page 34 - Konkan Garima 17th Ebook
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अक - 17                                                                                          माच , 2021
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                                                                            ू
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               हमारी भोगवादी  वित क े  कारण हमने इसका इस हद तक      चेता तो दिषत वातावरण हम  और हमारी पीढ़ी क े  िवनाश का
                                                                                     ु
               शोषण कर िदया है िक हमारा अपना अि त व ही सक ं ट  त    कारण बन सकता है। कछ ऐसा सकारा मक िकया जाना चािहए
                                                                                                            ु
                                                                                           ू
               होने लगा है। वै ािनक बार-बार चेतावनी द  े रहे ह  िक  कित,   तािक हमार  ेब च  क े  शरीर  दषण व क ट नाशक – म  ह । जब
                                                             ृ
                                                                                    ृ
               पया वरण  और प रि थित क  र ा करो, अ यथा हम भी नह      तक मानवीय एव  ं ाकितक प रि थितय  से तालमेल नह  होगा,
                                                                                   ु
                                                                                                             ू
               बच सक   गे।                                          पया वरण को स तिलत रख पाना किठन होगा।  दषण  पी
                                                                               ू
               स ाट हष वध न, अशोक, शेर शाह सरी ने जो सड़क   /राजमाग    रा स पर क़ाब पाकर ही दश े , िव  क  र ा क  जा सकती है।
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                                                                     ृ
                                                                         ृ
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               बनवाए थे उनक े  िलए िकतने व  क  बिल चढ़ानी पड़ी थी पर त  ु  व   कित क  एक अनमोल दन े  है और यही वजह है िक भारत म
                                                                     ृ
                                                                                          ू
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               उनक े  दोन  तरफ सैकड़ो नए व  भी लगवाए जाने तािक       व   को  ाचीन काल से ही पजा जाता रहा है। आज भी यह  था
                                                                             ृ
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               पया वरण म  कोई दोष न आ जाए। आज भी आप पाएगे िक        कायम है। व  हमार  े परम िहतैसी िनः वाथ  सहायक अिभ न
                                                                              ु
                                                                                                      ृ
                ामीण समाज अपने घर  व खेत  क े  आसपास व  लगाते है।   िम  ह । आयव िदक िचिक सा  णाली म  व   का अ यिधक
                                                      ृ
                                                                            ृ
               यहां क े  लोग व   क े  थाल बनाना, उनक  जड़ो पर िमटटी   मह व है। व   क े  िबना अिधकांश जीव  क  क पना भी नह  क
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                                                                              ृ
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                                                                                                    ू
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               चढ़ाना, स चना, व   को पजा अथवा आदर  कट करना आज        जा सकती। व   से ढक े  पहाड़, फल और फल  से लद  ेव , बाग,
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               भी प य-दायक काय  मानते है। यह सारी  थाए  ंइसिलए श  ह ई   बगीचे मनोहारी   य उपि थत करते ह  और मन को शांित  दान
                                                           ु
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                                                                                                  ृ
               ह गी तािक व -वन पित क  र ा होती रहे और मन य इनसे     करते ह । व   से अनेक  लाभ ह  जैसे व  अपनी भोजन  ि या
                                                         ु
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               िमलने वाला लाभ का आनंद उठाता रहे। वेद शा   म  पया वरण   क े  दौरान वातावरण से काब न डाइ ऑ साइड लेते ह  और
               घटक  क  श ता क े  िलए हम  एक ऐसा अमोघ उपाय  दान      आ सीजन छोड़ते ह  िजससे अनेक जीव  का जीवन सभ ं व हो
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                                                                            ृ
               िकया है जो सभी त व  पर अप रहाय  (यो य)  प से अपना    पाता है। व   से हम  लकडी, घास, ग द, रि े जन, रबर, फ़ाइबर,
                                                                                                                ु
                                                                                           ्
                भाव छोड़ते ह , वह उपाय है य  ।                       िस क, टैिनस, लेटै स, हडडी, बांस, क े न, क था, सपारी,
                                                                                                      ँ
                                                                                  ू
               य   एक  आ याि मक  उपासना  का  साधन  होने  क े   साथ   तेल, रग ं , फल, फल, बीज तथा औषिधया  ा  होती ह । व   ृ
                                                                                                            ू
                                                                                ु
               पया वरण को श  करने, उसे रोग और क टाण रिहत रखने तथा   पया वरण को श  करने का काय  करते ह  और  दषण को दर  ू
                                                   ु
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                दषण रिहत रखने का अ िमत साधन है। भारतीय स  ं कित क    करते ह ।  विन  दषण को दर करते ह । वाय अवरोधक क  तरह
                                                                                         ू
                                                                                  ू
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               यह शैली रही है िक उसम  जीवन क े  िजन क   य अथवा म य    काम करते ह  और इस तरह आधी तफान से होने वाली  ित को
                                                             ू
                                                                               ृ
                                                                                                   ू
               का  े  और आव यक माना गया है, उ ह  धािम कता और प य  ु  कम करते ह । व  क  जड़ िम ी को मजबती से पकड कर रखती
                                                                             ू
               क े  साथ सय ं   कर िदया गया है, िजससे लोग उनका पालन   है िजससे भिमक  कटान  कत  है।
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                                       ु
               अिनवाय   प से कर   जैसे क  तलसी, पीपल क  र ा आिद। य    अ यथा पहाड  पर से िम ी बह कर मैदानी  े   म  आती है और
                                                                       ँ
               एक ऐसा पया वरण शोधक दि ै नक अिनवाय  क   य माना जाता   वहा वह निदय  क े  धरातल म  जमा होकर निदय  क  गहराई को
               रहा है, िजसे शा   म  य ोवे  े  तम कम  कहकर जीवन का   कम कर दत े ी है प रणाम  व प मैदानी इलाक  म  अिधक वषा
                                                                                           ृ
                े ा मी क   य घोिषत िकया है। पया वरण शोधक य  एक      होने पर ज दी बाढ़ आती है। व  वषा  जल को धरा पर  कते ह
                                                                                              ृ
               िव ान है और इसक   ि याए  ंवै ािनक है।                और वातावरण को नम रखते ह । व  वषा  जल को तेजी से बहने
                                                                                         ृ
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               जनता व सरकार का दािय व बनता है िक अिधक से अिधक व   ृ  से रोकते ह  िजससे जल प वी म  नीचे तक पह च पाता है और
                                                                     ू
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               लगाकर वातावरण को दिषत होने से बचाए। ं  ऐसे करक े  हम   भिमगत जल  तर बढ़ाता है। व  सय  क े  ताप से जीव  को बचाते
                                    ू
               अपना ही नह , सव जन िहतकारी क याण का काम करग   े। हम    ह । अनेक  जीव इसक  गोद म  शरण पाते ह  और इसक े  फल,
               व   और वन  को अपने प   क  भांित पालना और र ा करनी    फल, जड़, तना तथा प   से अपना पोषण करते ह । इस बात को
                                                                     ू
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               होगी, व   का िन  योजन काटना न हो और भी तो उतने या    य भी समझ सकते ह  िक व  नह  होते तो जीव जत ं  तथा प वी
                                                                                        ृ
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               उससे दगने व  अव य लगाना चािहए। अगर समय रहते नह       का  या हाल होता।
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