Page 7 - Konkan Garima ank 19
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अंक - 19                                                                                        माच , 2022








            म ययुगीन भि  का आंदोलन सम त भारत वष  म  अ य त  िह दी ही रही थी।

                                                                                                े

                           ै

                          ह
             भावकारी रहा । भि  क  िविवध शाखा  शाखाओं            मराठी संत  का िह दी का य महारा   क  मुख स  दाय  म
                                                  -
                                                                                                           े
            तथा उनक िस ा त  का  सार सम त भारतवष  म  ह आ था      से नाथ एवं महानुभाव स  दाय  ने अपने िस ात   क  चार
                    े
                                                                                े
                                                                 े
                              ,
                                      ,

                                                        े


            गो वामी तुलसीदास सूरदास कबीर मीराबाई क पद           क िलए मराठी क साथ-साथ िह दी को िवशेष  प से
                                             ,


            अ य त सरलता क साथ महारा   म  गाए जाते थे। आज भी     अपनाया  था।  धािम क  तीथ  थान ,  धम  ंथ   एवं  धम
                           े
                                                                         े
                            े
            उनक   रचनाओं  क   ाचीन  ह तलेख  पया    सं या  म      चारक  क मा यम से महारा   म  िह दी का  चलन आज
                             े
            िमलते ह । महारा   क स त नामदेव ने उ र भारत म  जाकर   भी है। इस  कार  प  है िक महारा   म  म य देश क  भाषा
                                                                        े

            िह दी म  िनगुण भि  का  ितपादन िकया। संत कबीर का     िह दी  क   चार- सार  म   धािम क  ि थित   का  अ यंत
            महारा   म  आना त कालीन अिभलेख  से  प  है। मराठी     मह वपूण   थान रहा है।
                                                                 यापार:   यवहार का साधन  यापार है। अपनी जीिवका


            स त   क  का य  म   कबीरदास तुलसीदास सूरदास,
                                                   ,
                   े
                                       ,
                                                                चलाने हेतु िजन अनेक साधन  का आ य लेना पड़ता है,
                                      े
            मीराबाई क  अ य त आदर क साथ  शंसा िमलती है।
                                                                            ,
                                                                उनम    यापार  यवसाय  तथा  नौकरी  मह वपूण   है।
            िजससे  प  होता है िक महारा   क संत  पर क ु छ मा ा म
                                         े
                                                                 ाचीनकाल से ही भारतवष  क िविभ न  थान  म   यापारी
                                                                                         े
            िह दी स त  का वैचा रक  भाव या संभवतः उ ह ने उनक
                                                                                                 े
                                                                                                   े
                                                                िविवध व तुओं का आदान- दान करत थ। इन  यापा रय
            िह दी रचनाएँ पढ़ी भी होगी  य िक महारा   क लगभग
                                                    े
                                                                क दो  मुख वग  थ, बड़ और छोट  यापारी। बड़े  यापा रय
                                                                 े
                                                                                   े
                                                                                            े
                                                                               े
            सभी संत िह दी जानते थे और उ ह ने िह दी म  भी रचनाएँ
                                                                                            ा

                                                                                                       े
                                                                                          थ
                                                                का जनता से उतना संपक नह   िजतना छोट  यापा रय

            क  है।

            महारा   क सं त  ने िह दी स त  क  भाित िनगुण और      का । उ र भारत म  िद ली, आगरा, कानपुर, वाराणसी,
                     े
                                               ँ
                                                                                       े
                                                                                                                े
                                                                                                े
                                                 ,

            सगुण को अलग  प म   वीकार नह  िकया अिपतु दोन         लखनऊ आिद  यापार क  मुख क   म  महारा   क
                                                                             े
            को एक ही पर  ह क दो  प अथवा अंग मानकर  वीकार         यापारी उन क    म  आव यकतानुसार चीज  खरीदने
                             े
                                                                                         े
                                                                             े
                                                        े
            िकया है। अतः महारा   म  संत श द िह दी क  भाँित कवल   अथवा बेचने क िलये जाते थ। महारा   म  भी  यापा रक
                                                                      े
                                                                 े
                                                                             ू ू
            िनगुण संत   क िलए  यु   नह   होता।  उनक    ि    म    क   थ। यहाँ दर-दर से लोग आते थे िजनम  िह दी भाषी
                        े

                                                                       े
                                                                              े
                                                                                        े
                                                                                 े
                                                ह



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                                            '

            िनगुणोपासक तथा सगुणोपासक दोन  संत । भि काल           देश क भी होत थ। यहाँ क महाजन भी िह दी  देश  म
                                                                           े
                                                                                           े

            म  िनगुण भि  क  अपे ा सगुण भि  क  रामभि  और         जाया करते थ। िविभ न  देश  क लोग  से आपसी  यवहार
                                                                                 े
            कृ  णभि  शाखाओं का िव तार अिधक  प म   ि गत          करने क  सुिवधा क िलए ये िह दी भाषा का ही उपयोग
                                                                              े
                                                                      े
            होता है। उनम  भी तुलना मक  ि  से लोकर क राम क       करते थ। जो छोट  यापारी थे वे महारा   म  िविवध व तुएँ
                                                                                                 े
                                                                                 े
            भि  क  अप ा लोकरंजक एवं लोकर क क समि वत              वयं बेचने  आते थ। जब वे महारा   क गांव  म  वहाँ क
                       े
                                                   े
            गुण  से संप न कृ  ण क  भि  का  चार सम त भारतवष  म    जनता से बातचीत करते थे तो िह दी भाषा का ही  योग
            अ यिधक था। बह भाषी भारतवष  म  िविवध  देश  म   या    करते थे और  ाहक भी िह दी म  बोलते थे चाहे िकतनी ही
                                                                                 न
                                                                   -

                                   े
            रामभि  और कृ णभि  क सािह य क  सवजननी भाषा           टूटी फू टी िह दी  य   हो।
                                                               5
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