Page 9 - Konkan Garima ank 19
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अंक - 19 माच , 2022
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तुक शासन क पूव चिलत िह दी म अरबी फारसी श द औरंगजेब क मृ यु क पूव मुगल का महारा म बार-बार
का अिधक योग होन लगा। आगमन होता था, पर तु उसक प ात मराठ म एक
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मुि लम शासक जाफर खां ारा थािपत ा हनी रा य से अभूतपूव नयी शि का उदय ह आ। प रणाम व प मराठा
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यहाँ मु लीम शास ि थर हो गए थ। उसक िवक ीकरण रा य क सीमा उ र म बह त दर तक िव तृत हो गई। अब
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क प ात बीजापुर क आिदलशाही अहमदनगर क उ र भारत क अिभयान क िलए तथा अ य राजनीितक
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िनजामशाही म मराठा सरदार क सं या अिधक थी। अतः कारण से मराठा शासक , सरदार , सिनक और अ य
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मुसलमान सुलतान का महारा क जनता से घिन संपक कमचा रय का आवागमन शु ह आ। बार-बार िह दी
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होने लगा और नौकरी पाने पदो नित करने या अपना थान भाषी देश म आनवाले तथा वहाँ िनवास करने से ितिदन
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बनाए रखने क िलए महारा क मराठा सरदार ने क यवहार क सुगमता क िलए मराठ िह दी जानना
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वभावतः मुसलमान शासक क िह दी भाषा को हण अिनवाय हो गया ।
िकया। बीजापुर क सुलतान इ ािहम आिदलशाह तो वयं मुगल शासन क राजभाषा िह दी थी। आगरा िद ली म
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िह दी म किवता िलखते थे। उ ह ने ' नवरस नाम क ंथ क इनक राजधानी रहने से वहाँ क िह दी का वाभािवक प
रचना क और अपने दरबार म अनेक िह दी किवय को से िवकास ह आ। शासन यव था तथा अ य राजनीितक
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आ य िदया। कामकाज क िनिम मराठा शासक तथा पेशवाओं को
मराठी रा य क सं थापक छ पित िशवाजी महाराज क िह दी म प ाचार करना पड़ता था। मराठा शासक ारा
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िपता शाहजी महाराज ने सं कृत थ क िह दी म अनुवाद िह दी म ेिषत प क सं या भी िवपुल मा ा म उपल ध
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कराने क मह वपूण योजना बनाई थी। उनक आि त संकर होती है। इससे प है िक मराठा दरबार म िह दी प ाचार
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सुकिव न भानुद िम क रसमंजरी का िह दी म अनुवाद करने तथा समझने क मता रखनेवाले दुभाषी यि य
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तुत िकया था। आर भ म किव ने अनुवाद क शासक य को िह दी सीखनी थी। इस कार अं जी शासन क पूव तक
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भूिमका प करते ह ए कहा है- महारा क िह दी क सार एवं िवकास म राजनीितक तर
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"साहभूप आय दयो, संकर किव को आजु ।
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पर भी मह वपूण योगदान रहा है। अं ेजी शासन तथा
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सरमंिजरी भाषा करौ चले जगत को काजु ॥
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वातं यो र काल म यह काय और अिधक सुिनयोिजत
संभवतः इसी प म िह दी का मह व जानकर अ य किवय
प म होने लगा ।
ने भी िह दी भाषा क किवय को भी थान देना ारंभ िकया
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हा
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इस कार रा म िह दी का चार धािमक यापा रक
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था। महारा क मराठा शासक क दरबार म आचाय
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और राजनीितक कारण से कई सिदय से होता आ रहा है
िचंतामिण महाकिव भूषण मितराम लोकमिण िम ,
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और आज भी कई अिधक मा ा म हो रहा है।
सीताराम महापा संकर, सुकिव, किव कलश जयराम
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आिद किवय को स मान सिहत थान िमला था।
भारतीय भाषाएँ निदयां ह और िहंदी महानदी ।
- रिवं नाथ टैगोर
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