निर्माण चुनौतियां
निर्माण-एक चुनौती
यह काम बहुत ही कठिन था जैसाकि कार्लिस गोपर्स ने जुलाई1997 में अपनी स्वीडिश इंटरनेशनलडिवेलपमेंट को-ऑपरेशन एजेंसी(एस.आई.डी.ए.) रिपोर्ट में भी उल्लेखकिया गया था कि इस पहाड़ी औरपठारी क्षेत्र में, जहां कईनदियां हैं, वहां कुल 2000 पुलऔर 92 सुरंगें बनानी होंगी, जिसकेकारण दुनिया के कम से कम इसहिस्से में इस सदी की यह सबसेबड़ी और शायद सबसे मुश्किलरेल परियोजना है। ऐसी कई समस्याओंको कुशलता पूर्वक कम से कम समयमें निपटाया गया ।
इस परियोजना में हर तरह की समस्याएंथीं-तकनीकी,वित्तीय, भावनात्मकऔर मनोवैज्ञानिक भी, चट्टानीसहयाद्रि का सीना चीरा जानाथा । लगभग 1500नदियों को पाटाजाना था और एक ऐसी रेललाइन तैयार करनी थी-जैसी अभीतक कहीं और नहीं थी और जहांपलक झपकते ही जहरीले सांप याशेर भी रास्ते में सामने दिखाईपड़ सकते थे। गिरते हुए तटबंधोंऔर सीना तान कर खड़े पहाड़ोंके सामने इंजीनियरों को भीअपनी कमर कसनी पड़ी किंतु उन्हेंइन लोगों की भावनाओं का भी गहराध्यान रखना पड़ा जिन्हेंइस परियोजना के लिए अपनी जमीनखोनी पड़ी थीं ।
उस मुश्किलदौर में पारिवारिक जिंदगी भीपीछे छूट गई थी-जब इंजीनियरअपने काम पर जाते थे तो उनकीपत्नी को यह पता नहीं होताथा कि रात को वे घर वापस लौटेंगेभी या नहीं। इस दौरान कई इंजीनियरोको अपने परिवार से दूर रहनापड़ा और यहां तक कि वे दीपावलीजैसे त्योहारों पर भी वे अपनेघर नहीं लौट पाते थे ।
बहुतकम समय में ही काम के हालात भीअच्छे नहीं रहे जब 1994 के जूनमहीने में महाड़ में सड़क कीसतह से 10-12 फुट ऊपर तक बाढ़ कापानी भर आया था और बाढ़ का पानीउतरने के बाद कोंकण रेलवे कीजीप की सीटों पर कीचड़ की लगभग 6 इंचमोटी परत जम गई थी । कर्नाटकमें बैंदूर की एक सुरंग मेंजब अचानक भर आए पानी के एक जलजलेने 4 कामगारों को 60 फुट पीछे धकेलदिया तो उन्हें अपनी जान बचानेकी लड़ाई खुद अकेले ही लड़नीपड़ी ।
खतरे का कारण केवल पानी ही नहीं था। जुलाई 1997 के मानसून में उक्षीमें एक पूरा पहाड़ी हिस्साढह गया था और मशीनें मलबे मेंदब गईं थी पर यह चमत्कार ही थाकि वहां कार्यरत 200मजदूरों की जान बच गई थी। उस समय कोंकण रेलवे पर कार्यरत30 वर्षीय एक्जीक्यूटिव इंजीनियररवि कपूर जैसे लोग भी बेहद खुशनसीबरहे थे । 10 अक्टूबर 1997 को पेढ़णेसुरंग पूरी होने से तीन महीनेपहले जहां वे खड़े थे, उनके ऊपरएक बड़ी चट्टान ढह गई थी और श्रीकपूर ने पाया कि वे कमर तक मिट्टीमें गहरे धंस गए थे, उनका हैलमेटटूट गया था और उनके पैर पर एकपत्थर आ गिरा था । एक सहयोगीने उन्हें बचाया और श्रीकपूर उस संकट से बाहर आ सके परकेवल इतना ही नहीं हुआ! 26 अगस्त1997 को दूसरे कई कामगारों को भीइसी तरह से बचाया गया जब एक इंजीनियरद्वारापेढ़णे सुरंग में भारी मात्रा मेंमिट्टी ढहने से ठीक पहले हीसमय पर चेतावनी दी गई थी औरकामगारों ने उस जगह को खालीकर दिया था ।
जो इन कड़ी चुनौतियों के बाद भी आगे बढ़ते गए-उनके द्वाराहासिल उपलब्धि अत्यंतमहत्वपूर्ण रही है। यदि उन लोगों द्वारा इसे केवल महज एकमान्य काम ही समझा जातातो इस काम को पूरा करने में25 साल का समय लगता । यहएक बहुत ही चुनौती भरा कामथा जिसे पूरा करने में प्रदर्शितएकजुट होकर काम करने की भावनाही इस परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने में अत्यंत महत्वपूर्णरही।