प्रस्तावना
कोंकण क्षेत्र: शानदार लेकिन इलाके को चुनौती
कोंकण रेलवे भारत की वाणिज्य राजधानी मुंबई और मंगलोर को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी थी | 741 कि.मी. लंबी यह लाइन महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक राज्यों को जोड़ती है जो एक ऐसा क्षेत्र है जहां आर-पार बहती नदियां, गहरी घाटियां और आसमान छूते हुए पहाड़ हैं । कोंकण जमीन की एक तटवर्ती पट्टी भी है जहां पूर्व में सह्याद्रि पर्वतमाला और पश्चिम में अरब महासागर है । यह ऐसी भूमि है जो कई पौराणिक गाथाओं से जुड़ी है और जहां आर्थिक खुशहाली भी है और जहां प्रचुर मात्रा में खनिज स्रोत, घने वन तथा धान, नारियल और आम के पेड़ों से भरे हरे-भरे मैदान हैं ।
इस कठिन पठारी क्षेत्र पर निर्माण के लिए बहुत थोडे़ समय में जीत पाने का मतलब था कि कई टेक्नोलॉजी के साथ इस परियोजना को पूरा किया जा सके । देश में दूसरी निर्माण परियोजनाओं के लिए तय किये जाने वाले तरीकों से हटकर, कोंकण रेलवे भारतीय इंजीनियरों, उनके अपने क्षेत्रों, मिलकर काम करने की भावना और उनके उत्साह की एक मजबूत उदाहरण पेश करती है । लेकिन यह मानव की अदम्य इच्छा शक्ति को भी प्रणाम है । तकनीकी विजय के साथ- साथ यह विश्वास की एक लंबी छलांग थी जिसने इस क्षेत्र के लोगों के लंबे समय से संजोए एक सपने को साकार करना संभव बनाया ।
कोंकण रेलवे ने इस तरह इस परियोजना से जुड़े लोगों और इंजीनियरों के जीवन को भी बदल डाला । उनके लिए यह सभी कठिनाइयों पर विजय की गौरव-गाथा थी और उन्हें यह संतोष तथा अभिमान भी था कि उन्होंने भावी पीढ़ी के लिए कुछ किया है कोंकण क्षेत्र के कई लोगों के लिए कोंकण रेलवे का पूरा होना भाग्य को निमंत्रण देना जैसा ही था जो राष्ट्र की स्वतंत्रता के 50 वें वर्ष में पूरा हुआ । इसी लिए यह सर्वथा उपयुक्त था कि रेल पथ तैयार होने के बाद पहली गाड़ी को 26 जनवरी , 1998 को गणतंत्र दिवस के ही दिन हरी झंडी दिखा कर रवाना और कोंकण रेलवे को राष्ट को समर्पित किया गया ।