भूमि अधिग्रहण

लोहे  के ताने-बाने में धड़कता कोमल हृदय  !

भूमि-अधिग्रहण लोहे के ताने-बाने में धड़कता कोमल हृदय ! कोंकण रेलवे परियोजना का संरेखण पूरा होने के बाद कुल 4,850 हेक्टेयर भू​मि का अधिग्रहण किया जाना था । जो 760 ​​कि.मी. क्षेत्र में फैली हुई ​थी । निश्चित रूप से भू​​मि का अधिग्रहण एक मुश्किल काम था क्यों​कि कोंकण में जमीन संबंधी जटिल मुकदमें एक आम बात थी पर जब कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने लोगों को उनके परिवार और पीढि़यों से जुड़ी जमीन देने के लिए समझना-बुझाना शुरू किया तो कई लोगों ने इस परियोजना के महत्व से सहमत होते हुए अपनी मर्जी से अपनी जमीन छोड़ दी । उनके सहयोग के कारण पहले ही वर्ष में आवश्यक जमीन के अधिग्रहण का कार्य संभव हो सका ।

इतनी बड़ी और अत्यधिक महत्वपूर्ण परियोजना के लिए सकारात्मक भावना के साथ स्थानीय लोगों के जुड़ने का उदाहरण कम ही देखने को मिलता है। इसी आपसी भावना को बनाए रखते हुए कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा भी निगम में भर्ती करते समय और वाणिज्य संबं​धी ठेके देते समय कोंकण रेलवे परियोजना के भूमिहीनों को पहली प्राथमिकता देने की नी​ति अपनाई गई है । केवल इसी सदभावना से ही पिछले कई वर्षों में निगम को नई ऊंचाइयां छूने में मदद मिली है । स्थानीय अधिकारियों ने भी भू​मि के अधिग्रहण में सहायता की थी ।

उदाहरण ​के लिए अलीबाग के कलैक्टर श्री गणेश वालावळकर ने भी आगे बढ़ कर रोहा से नाथुवाड़ी के बीच भू​मि-अधिग्रहण में कोंकण रेलवे की भरपूर मदद की। महाराष्ट्र में जबकि 50 से 60 गांव इससे प्रभावित हुए थे पर केवल पांच स्थानों अर्थात कोलाड, रावधल, गोटे और खेड में ही कुछ समस्याएं उभरीं पर उन्हें भी जल्दी ही सुलझा लिया गया । आधिकारियों की सहायता और तुरंत मुआवाजे से जल्दी ही इन समस्याओं का निपटारा हो सका था । कर्नाटक में वन-भू​मि के बड़े हिस्से के लिए पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी लेना भी एक टेढ़ी खीर थी पर इसे कुशलता पूर्वक पूरा ​किया गया जिससे राज्य और केन्द्र सरकार से पहले ही वर्ष में सभी मंजूरियां जल्द ही प्राप्त कर ली गईं । इस दौरान 42,000 जमीन मालिकों को बुलाया गया और 144.88 करोड़ रू.मूल्य का मुआवजा दिया ​गया । इस राष्ट्रीय परियोजना के महत्व को जमीन मा​लिकों को समझाने के लिए गांव स्तर पर बैठकें आयो​जित की गईं जिससे कई लोगों ने सहमत होकर मुआवजा प्राप्त होने से काफी पहले ही अपने सहम​ति-पत्र दे दिए ता​कि यह काम तुरंत शुरू किया जा सके।उनका आत्म-विश्वास इस बात से और बढ़ गया ​कि जब उनके चैक तैयार हुए तो उन्हें उनके घर पर जाकर ही चैक दिए गए ।

यह अचरज की बात है ​​कि जब जमीन मालिकों को समझाया-बुझाया जा रहा था तो कोंकण रेलवे को यह पता चला ​कि कुछ जमीन मालिकों को तो यह भी मालूम नहीं था ​कि कोंकण में उनकी अपनी जमीन भी है । फोटो नाथुवाड़ी सुरंग के फालकेवाड़ी छोर में कम से कम आधा दर्जन लोग तो ऐसे पाए गए जिनकी पैतृक भू​मि ​थी पर उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी क्यों​कि उनके परिवार वालों ने कोई कागजी कार्रवाई पूरी नहीं की थी। कोंकण रेलवे ने न केवल कार्रवाई पूरी करने में ही उनकी मदद की बल्कि उन्हें मुआवजा भी प्रदान किया । जमीन के लिए बताए गए मूल्य और उस पर लगे पेड़ों की संख्या, किस्म और उनकी आयु के आधार पर मुआवजा दिया गया – आम के एक पेड़ के लिए 2000 रूपए से 10000/- रूपए तक, काजू के पेड़ों के लिए कम से कम 1000/- रूपए तथा कटहल के पेड़ों के लिए 2000/- रूपए कीमत आंकी गई । कोंकण रेलवे ने लोगों को दोबारा घर बसाने में भी मदद की । दूसरे स्थान पर छः महीने तक रहने के लिए घर दिए गए, घर का सामान एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने के लिए ट्रक मुहैया कराए गए , जमीन –मालिकों को दूसरी जगह पर प्लॉट चुनने और उन्हें नॉन-एग्रीकल्चर उपयोग के लिए आवश्यक अनुमति दिलाने में मदद की गई । चूंकि जिन क्षेत्रों को इस रेल का लाभ मिलने वाला था, वे कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड के ही भागीदार थे, इसीलिए जहां जरूरत थी, स्थानीय अधिकारियों ने भी हर संभव सहायता प्रदान की जिससे जमीन का कब्जा लेने के काम में भी तेजी आई । कोंकण रेलवे ने लोगों को उनके घरों से तोड़े गए घरों के दरवाज़े, खिड़कियां और दूसरे उपयोगी सामान को ले जाने की भी सुविधा दी । कई मामलों में ऐसे लोगों को भी नौकरियां दी गई जिन्होंने अपनी जमीनों के हिस्से कर दिए थे । कठिनाईयों को कम करने के लिए, कोंकण रेलवे ने जहां तक संभव था, कटिंग के प्राकृतिक निवासों को उजाड़ने से बचाव ही किया तथा इस बात की भी पूरी कोशिश की कि पुरानी धरोहर की चीजों, धार्मिक और किसी समुदाय की इमारतों को भी न छुआ जाए ।

इस बात का भी ध्यान रखा गया कि जहां तक संभव हो कम से कम जमीन का ही अधिग्रहण किया जाए जिससे प्राकृतिक संतुलन और विरासत की चीजें कम से कम प्रभावित हों । इसके अलावा किसानों और उनके खेतों के लिए रेल लाइन के किनारे सुविधा जनक रास्ते भी उपलब्ध कराए गए । बाढ़ का पानी भरने वाले क्षेत्रों के लिए पिछले 100 साल के पूर्वानुमानों को आधार बनाया गया तथा इन जरूरतों को देखते हुए ही नदियों पर पुल और छोटी पुलिया बनाई गई । ऐसे मामलों में जहां लोगों के द्वारा पानी की सप्लाई सूख जाने की शिकायत की गई थी, उदाहरण के लिए पेढ़णे सुरंग के ऊपर पहाड़ी पर बसे एक गांव- अमई वाड़ा के बारे में, वहां पानी की सप्लाई की एक योजना भी शुरू की गई । वीर के पास चापड़ी में , जहां मिट्टी से तटबंध बनाए जाने के कारण, लोगों का कुएं तक जाने का रास्ता बंद हो गया था, ग्रामीणों के लिए एक नया कुआं तैयार किया गया । महाड़ में, कुओं और ट्यूब वैलों का निर्माण किया गया । कल्याण के दूसरे कई कामों की वजह से ही हाथ में लिए गए इस काम को जल्दी से निपटाया जा सका । मानगांव में गांव की दो महिलाओं ने जब सड़क के नीचे के एक पुल की नींव के लिए खोदे गए गड्ढे के कारण काम में बाधा डाल दी थी, तो एक दूसरी पहुंच सड़क बनाकर उनकी समस्या को हल किया गया । भला हो ऐसे उपायों का जिनसे रोहा-वीर खण्ड के दो सालों में ही पूरा किया जा सका ।

जमीन के अधिग्रहण के लिए व्यक्तिगत संबंधों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। गोवा में, वहां की आसानी से मेल-जोल वाली संस्कृति और माहौल ने इंजीनियरों को स्थानीय लोगों के साथ मेल-जोल बढ़ाने और उनका भरोसा जीतने में भी काफी मदद की । यह काम सचमुच एक बेहद मुश्किल काम था । रेल लाइन का संरेखण जहां तक संभव हो , सीधा रखे जाने की कड़ी शर्त के कारण घुमावों को कम से कम 1250 मी. के व्यास और लंबी सुरंगों, ऊंचे सेतुओं, तटबंधों तथा गहरी कटिंग में ढाल को 150 में 1 तक बनाए रखना इंजीनियरी की ऐसी चुनौतियां थीं जिन्हें कोंकण रेलवे की टीम ने पूरा कर दिखाया किंतु निर्माण के दौरान इनके अलावा ऐसी और भी कई चीजें थीं जिन्हें अपनाया गया था !