संरेखण
रेल लाइन का संरेखण
इतनी अधिक कड़ी समय-सीमा में, इंजीनियरों को नए तौर पर तथा बहुत तेजी के साथ सोच-विचार करना जरुरी था।परंपरागत रूप से जब किसी संरेखण पर काम शुरू किया जाता है तो कई जीपों और लोगों के हुजूम की जरूरत पड़ती है । श्री राजाराम, जो उस समय गोवा के मुख्य इंजीनियर थे और बाद में कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बने, उन्होंने पूरी जगह के सेटेलाइट फोटो लेकर बिल्कुल सही स्थिति वाले ट्रॉपोग्राफिकल नक्शे तैयार कराए। भारतीय रेल के इतिहास में पहली बार मोटरसाइकिलों पर टीम भेजी गई । उन्होंने लेवलिंग उपकरण आदि साथ ले जाने के लिए कुछ सुधार करते हुए कावासाकी मोटरसाइकिल मंगाने के भी आर्डर दिए और पूरे राज्य में जाने के लिए इंजीनियरी में डिप्लोमा प्राप्त कुछ नौजवानों को भी कामपर रखा गया । उन्हें प्रतिदिन सौ रूपए और पैट्रोल दिया जाता था जिसके लिए उन्हें कोई हिसाब देना जरूरी नहीं था जबतक कि वे रोजाना किए गए काम का विवरण देते रहते थे । उनके लिए इस तरह लक्ष्यरखे जाते थे कि उन्हें दिन में 14 घण्टे तक भी काम करना पड़ता था पर वे हर काम बेहतरीन तरीके से कर पाते थे। कोई अनुभव न होने पर भी उन्हें (इंजीनियर) का नाम दिया गया था । अपनी इस शान पर वे बहुत उत्साहित थे ।
गोवा में ऐसी तीस टीमों ने 16 अलग –अलग संरेखणों का काम किया और अक्सर आधी रात मेंभी आंकड़ों का विश्लेषण एक असेम्बल किए गए कंप्यूटर पर किया जाता था जिसे श्री राजाराम बंगलौर से खरीद कर लाए थे । श्री राजाराम ने इन आंकड़ों के विश्लेषण के लिए स्वयं एक सॉफ्टवेयर की रचना भी की। इस पहल के कारण सर्वेक्षण का काम लागत के 10 प्रतिशत खर्च पर ही पूरा किया जा सका।
जब गोवा में संरेखण को अंतिम रूप दिया जा रहा था उसी समय पूरे कोंकण में बहुत अधिक गहन गतिविधियां जारी थीं । 1990 से 1991 के बीच काम-काज के पहले दौर में विस्तृत सर्वेक्षण , जमीन पर रेल मार्ग की निशानियां लैण्ड प्लान और योजनातैयार करने, निविदा-सूचियां पूरी करने और मिट्टी की जांच तथाकिस ठीक स्थान पर पुल बनाया जाना है या सुरंग खोदी जानी है –यह तय करने का काम किया गया ।
यह उपलब्धि इसी कारण संभव हो सकी कि श्री श्रीधरन सहित श्री एस. बी. सालेलकर- उस समय मुख्य इंजीनियर (परियोजना) और श्री ए. के .
सोमनाथन –उस समय मुख्य इंजीनियर(तकनीकी) जैसे कई वरिष्ठ अधिकारियों ने खण्डों के मुख्य इंजीनियरों के साथ मिलकर इस पूरे मार्ग का दौरा किया था । उन पहाडि़यों और घाटियों पर चढ़ना-उतरना आसान काम नहीं था । रेल मंत्रालय के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम रेल इंडिया टेक्नीकल एण्ड इकोनोमिक सर्विसेज लिमिटेड (राइट्स) के जरिए दो चरणों में इस संरेखण से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का विस्तृत अध्ययन (ई.आई.ए.एस) किया गया । प्रथम चरण में उडुपि और मंगलौर के बीच की दूरी कवर की गई । दूसरे चरण में वीर और सावंतवाड़ी के बीच अध्ययन पूरा किया गया । राइट्स द्वारा गोवा में शेष संरेखण का पर्यावरण संबंधी अध्ययन अलग से किया गया । गोवा सरकार द्वारा इस संरेखण को मंजूरी दे दी गई जिसे राज्य के अधिकारियों के साथ विस्तार से चर्चा के बाद दिसम्बर , 1990 में अंतिम रूप दिया गया । मार्च, 1991 में नई सरकार द्वारा भी दोबारा इस संरेखण की पुष्टि की गई ।
इस योजना पर काम करते हुए कई बातों का ध्यान रखा गया जैसे मिट्टी भरने के कार्य, सुरंगों और पुलों का अधिकतम उपयोग, आबादी वाले क्षेत्रों को कम से कम प्रभावित करना बाग-बानी की जमीन खासकर आम और काज़ू के बगीचों को कम क्षति पहुंचाना, रिजर्व और घने जंग लों को छोड़ देना, समतल ढालों और घुमावों के लक्ष्य हासिलकरना। गोवा में जहां लोग खासतौर पर अपनी पैतृक संपत्ति छोड़ने को लेकर अधिक संवेदनशील थे, उसके लिए कोंकण रेलवे के इंजीनियरों ने यह देखने के लिए हर घर का दौरा किया कि क्या उनकी जमीन बचाने का कोई भी रास्ता निकाला जा सकता था । कई मामलों में, उनके समाधान भी खोजे गए । इसीलिए गोवा में इस संरेखण पर सबसे अधिक घु माव रखे गए हैं । यहां तक कि मांडवी पुल भी घुमाव पर ही है । ऐसे सावधानीपूर्वक प्रयासों के कारण ही गोवा में केवल 35 घरों को ही प्रभा वित किया गया जहां जनसंख्या काफी अधिक थी । स्थानीय लोगों के भारी दबाव को देखते हुए, कोंकण रेलवे टीम को अपनी इंजीनियरी कु शलता को और अधिक प्रखर एवं सक्षम बनाना पड़ा ।
इस दौर में कई कठिन निर्णय भी लेने पड़े । दासगांव के नजदीक सावित्री, काल और नागेश्वरी नदियों के संगम पर दासगांव सुरंग(दक्षिणी छोर) और सावित्री पुल के ठीक बीच में रेल संरेखण पर एक कब्रिस्तान था । संरेखण पर यहां रेल मार्ग को बदलने के अलावा कोई चारा नहीं था । इसीलिए कोंकण रेलवे ने रीति-रिवाजों का विधिवत पालन करते हुए अस्थियों को नई जगह पहुंचाकर ग्रामीणों के लिए एक दूसरे शमशान-स्थल का निर्माण किया गया और वहां पहुंचने के लिए एक चौड़ी सड़क भी तैयार की गई ।
कब्रिस्तान को स्थानांतरित करना इंजीनियरों के लिए एक मुश्किल काम रहा । यह कार्य दासगांव के हर आदमी का भरोसा हासिल कर और स्थानीय नेताओं तथा विधायक को शामिल कर कुशलतापूर्वक पूरा किया गया ।
लेकिन भावनाएं साफ तौर पर कुछ और ही हालात ब्यान कर रही थीं जब इंजीनियरों ने रिपोर्ट किया कि पुराने कब्रिस्तान पर रखी हैवी सीमेंट मिक्सिंग मशीन रात में अजीब तरीके से अपनी जगह से खिसक कर दूर चली गई थी ।